27 जून को महेश में होगी ऐतिहासिक रथयात्रा, प्रशासन ने सुरक्षा के किए पुख्ता इंतजाम
हुगली / पश्चिम बंगाल) ( सौम्य चक्रवर्ती ) पुरी के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी और ऐतिहासिक रथयात्रा पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के श्रीरामपुर के महेश में 27 जून को आयोजित होगी। प्रशासन और मंदिर समिति की ओर से रथयात्रा के सफल आयोजन के लिए सुरक्षा से लेकर यातायात, बिजली और स्वास्थ्य सुविधার समुचित प्रबंध किए जा रहे हैं। महेश की यह रथयात्रा 629 साल पुरानी परंपरा को जीवित रखे हुए है। आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ, बलराम
और सुभद्रा को भव्य रथ पर बैठाकर 'मासीबाड़ी' यानी मौसी के घर ले जाया जाता है। श्रीरामपुर की सड़कों पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इस भीड़ को देखते हुए पुलिस, दमकल विभाग, बिजली विभाग सहित सभी संबंधित एजेंसियों ने पहले ही स्थल का निरीक्षण कर लिया है।
रथ मार्ग पर बाधा बनने वाले पेड़ों की छंटाई और अतिक्रमण हटाने का काम भी तेजी से किया जा रहा है ताकि रथयात्रा में किसी तरह की असुविधा न हो। रथ के सुचारु संचालन के लिए सड़क के दोनों ओर स्थित अस्थायी दुकानों को हटाया जा रहा है।
महेश की रथयात्रा का इतिहास 1396 ईस्वी से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि एक पुर्तगाली व्यापारी ने यहां भगवान जगन्नाथ का मंदिर स्थापित कर रथयात्रा की शुरुआत की थी। बाद में हुगली के तत्कालीन दीवान कृष्णराम बसु ने इस रथयात्रा की परंपरा को नया स्वरूप दिया। उन्होंने एक नया रथ बनवाया और यात्रा मार्ग को दुरुस्त कराया।
रथयात्रा के दौरान महेश में एक माह का मेला भी लगता है, जिसमें बंगाल सहित देशभर से श्रद्धालु आते हैं। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘राधारानी’ में महेश की रथयात्रा का वर्णन किया है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता और बढ़ जाती है। हर साल की तरह इस बार भी महेश की रथयात्रा को लेकर स्थानीय लोगों में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव से रथ की रस्सी खींचकर भगवान को मासीबाड़ी तक पहुंचाते हैं और फिर लौटकर मंदिर में विराजमान करते हैं। प्रशासन का लक्ष्य है कि यह ऐतिहासिक परंपरा शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न हो ताकि श्रद्धालु एक यादगार अनुभव के साथ लौट सकें।
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