नक्सली लीडर के पत्र से हुआ खुलासा, नक्सलियों के लिए कोई भी ठिकाना नहीं है सुरक्षित : अमित शाह
चंडीगढ़, केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक डेडलाइन दिया कि 31 मार्च, 2026 तक इस देश से नक्सलवाद हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। नक्सलवाद को देश के विकास में नासूर की तरह मानने वाले शाह ने अपनी रणनीतिक सूझ-बूझ और अद्भुत प्रशासनिक क्षमता के बल पर भारत को उस मुकाम पर पहुँचा दिया है, जहाँ से नक्सलमुक्त भारत का सपना अब साकार होता दिख रहा है।
पूरा देश जानता है कि दशकों से वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली सरकारों ने सत्ता के लिए नक्सलवाद और आतंकवाद का पालन-पोषण किया, जबकि मोदी सरकार ने नक्सलवाद पर नकेल कस कर देश को शांति व विकास के पथ पर अग्रसर करने का काम किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कुशल मार्गदर्शन में सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ लगातार चलाए जा रहे अभियानों से नक्सली संगठन बुरी तरह कमजोर हो
गए हैं। इसी अभियान के तहत बीजापुर में हुई मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों को नक्सलियों का एक पत्र मिला, जिससे पता चला कि नक्सलियों के मन में गहरा डर पैदा हो गया है। अब उनके पास देश में छिपने के लिए कोई भी सुरक्षित स्थान नहीं बचा है। नक्सलवाद को दुश्मन मानने वाले शाह के वार से नक्सलियों में हाहाकार मच चुका है और आज स्थिति ऐसी हो गई है कि बचे-खुचे राज्यों में लाल आतंक अब दहशत के साये में जी रहा है।
नक्सली लीडर मोटू ने अपनी साथी महिला नक्सली कमांडर मनकी को जो पत्र लिखा था, उससे साफ जाहिर होता है कि नक्सली अब खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। उसने पत्र में लिखा कि, ‘बोडका, गमपुर, डोडीतुमनार और तोड़का जैसे इलाके भी अब असुरक्षित हो चुके हैं और सुरक्षा बलों के लगातार हमलों के चलते नक्सलियों के पास छिपने की कोई जगह नहीं बची है।’
नक्सलवाद मुक्त देश के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध शाह की सटीक नीतियों का ही परिणाम है कि देश के कई हिस्सों में आतंक मचाने वाले नक्सली आज खुद खौफ के साये में जी रहे हैं। मोदी जी की अगुआई में शाह की बेजोड़ रणनीति और सशक्त नेतृत्व का असर अब जमीन पर दिख रहा है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, अबूझमाड़, बस्तर और बीजापुर जैसे इलाकों में लगातार ऑपरेशन चल रहे हैं, जिनमें सैकड़ों नक्सली मारे जा चुके हैं। पिछले एक साल में ही 380 नक्सली मारे जा चुके हैं, जबकि 1,194 नक्सली गिरफ्तार हुए और 1,045 ने आत्मसमर्पण कर दिया। कुल मिलाकर 2,619 नक्सलियों की संख्या में कमी आई है।
अंत्योदय की राजनीति करने वाले शाह ने नक्सलवाद के खात्मे के लिए महज आक्रामक नीति को नहीं अपनाया है, बल्कि नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास, जनकल्याण और आदिवासी समुदायों के सशक्तिकरण पर भी जोर दिया है। यही कारण है कि आज छत्तीसगढ़ के कई नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आम जनता सरकार और सुरक्षा बलों के समर्थन में खड़ी हो रही है। हथियार छोड़ कर आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का मौका देकर शाह ने नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में मोदी सरकार के विकास व विश्वास की संकल्पना को साकार करने का काम किया है। भारतीय राजनीति के चाणक्य जब यह दावा करते हैं कि मार्च, 2026 तक इस देश से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा, तब यह जरूरी हो जाता है कि उनके पिछले काम-काज को देख लिया जाए। शाह का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि जब-जब उन्होंने कोई वादा किया है तो उसे डंके की चोट पर निभाया है। ऐसे में यह मान कर चलना चाहिए कि 31, मार्च 2026 केवल एक तारीख नहीं, बल्कि नक्सलवाद की समाप्ति की ऐतिहासिक घड़ी बनने जा रही है।
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