हरप्रीत कौर: जिसने जाते-जाते तीन जिंदगियों में फिर से रोशनी भर दी
चंडीगढ़, कभी-कभी किसी की मुस्कान इतनी गहरी छाप छोड़ जाती है कि वह उसके जाने के बाद भी अनगिनत जिंदगियों में उजाला कर जाती है।
फतेहगढ़ साहिब के बसी पठाना मोहल्ले की 17 वर्षीय हरप्रीत कौर भी ऐसी ही एक कहानी बन गई — एक कहानी इंसानियत की, साहस की और निस्वार्थ प्रेम की। बीसीए की पढ़ाई कर रही हरप्रीत चंद रोज पहले एक दर्दनाक हादसे का शिकार हो गई थी। ऊंचाई से गिरने के बाद उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ में डॉक्टरों ने 20 अप्रैल को उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया।
परिजनों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था, फिर भी पि
ता सुरिंदर सिंह ने वह फैसला लिया, जो शायद हर कोई नहीं ले पाता — बेटी के अंगदान का। हरप्रीत की आखिरी सांसों ने तीन गंभीर मरीजों को नया जीवन दिया।उनका लिवर मोहाली के 51 वर्षीय मरीज को लगाया गया, जो लिवर फेलियर से जूझ रहे थे।सोलन की 25 वर्षीय युवती को उनकी एक किडनी और पैंक्रियाज प्रतिरोपित किए गए, जिससे वह फिर से सामान्य जीवन की ओर लौट सकी।चंडीगढ़ के 36 वर्षीय युवक को हरप्रीत की दूसरी किडनी मिली, जो अब डायलिसिस के दर्द से मुक्त होकर नई जिंदगी जी रहा है।
पिता सुरिंदर सिंह की भीगी आंखों से निकले शब्द हर दिल को छू जाते हैं —"हरप्रीत दूसरों की मदद करने में सबसे आगे रहती थी। उसे खोने का दुख शब्दों से परे है, लेकिन यह जानकर सुकून है कि उसकी वजह से अब तीन घरों में फिर से दीये जल उठे हैं।"
पीजीआईएमईआर के निदेशक प्रो. विवेक लाल ने इसे "मानवता की मिसाल" करार देते हुए कहा कि अपने गहरे निजी दुख में भी दूसरों के लिए जिंदगी का रास्ता खोलने का साहस विरलों में होता है।लिवर प्रतिरोपण करने वाले प्रो. टी.डी. यादव ने कहा कि यह एक चुनौतीपूर्ण सर्जरी थी, लेकिन जब मरीज फिर से मुस्कुराता है तो सारी मेहनत सफल लगती है।रोटो-पीजीआईएमईआर के नोडल अधिकारी प्रो. विपिन कौशल ने कहा कि हरप्रीत का यह कदम न जाने कितनों को अंगदान के लिए प्रेरित करेगा।सभी अंग प्रतिरोपण पीजीआईएमईआर में ही सफलतापूर्वक किए गए, जिससे मरीजों को न केवल बेहतर देखभाल मिली, बल्कि एक नया जीवन भी।
आज हरप्रीत कौर भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका नाम उन अनगिनत दिलों में धड़कता रहेगा, जो इंसानियत, प्रेम और जीवन की उम्मीद पर भरोसा करते हैं।
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